परेड ग्राउंड कार्यक्रम में प्रोटोकॉल की अनदेखी – विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी नाराज़, मुख्य सचिव ने मांगा जवाब

परेड ग्राउंड कार्यक्रम में प्रोटोकॉल की अनदेखी – विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी नाराज़, मुख्य सचिव ने मांगा जवाब
देहरादून, 18 अगस्त।
स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर राजधानी देहरादून स्थित परेड ग्राउंड में आयोजित मुख्य समारोह में प्रशासनिक चूक सामने आई है। उत्तराखंड विधानसभा अध्यक्ष माननीय श्रीमती ऋतु खंडूड़ी को मंच पर उचित प्रोटोकॉल न दिए जाने से वह गहरी नाराज़गी प्रकट करती बताई जा रही हैं।
विधानसभा सचिवालय ने इस घटना को गंभीर मानते हुए मुख्य सचिव श्री आनंद बर्द्धन को पत्र भेजकर पूरे प्रकरण से अवगत कराया है। पत्र में प्रोटोकॉल उल्लंघन पर कार्रवाई की मांग के साथ विधानसभा अध्यक्ष की अप्रसन्नता दर्ज कराई गई है।
मुख्य सचिव ने तत्काल संज्ञान लेते हुए सचिव सूचना श्री शैलेश बगोली और जिलाधिकारी देहरादून श्री सविन बंसल से जवाब तलब किया है। यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि जब विधानसभा अध्यक्ष को औपचारिक निमंत्रण भेजा गया था, तो उनके लिए मंच पर उचित व्यवस्था क्यों नहीं की गई?
यह घटना केवल प्रशासनिक गलती तक सीमित नहीं है, बल्कि संवैधानिक पद की गरिमा से सीधे जुड़ा मुद्दा है। यह भी उल्लेखनीय है कि इससे पूर्व लोकसभा अध्यक्ष श्री ओम बिड़ला के दौरे के समय भी प्रोटोकॉल संबंधी त्रुटि सामने आ चुकी है। लगातार दोहराई जाने वाली इस तरह की लापरवाहियाँ उत्तराखंड की प्रशासनिक व्यवस्था और प्रोटोकॉल पालन को लेकर गंभीर सवाल खड़े करती हैं।
सूत्रों के अनुसार, माननीय विधानसभा अध्यक्ष इस पूरे घटनाक्रम से आहत हैं और उन्होंने इसे संवैधानिक पद के सम्मान से जोड़ते हुए कड़ी आपत्ति जताई है। अब देखना यह होगा कि शासन इस मामले में क्या ठोस कदम उठाता है और वास्तविक जिम्मेदारी किस पर तय की जाती है।
यह घटना बताती है कि प्रशासनिक स्तर पर प्रोटोकॉल जैसी बुनियादी व्यवस्थाओं के प्रति अपेक्षित संवेदनशीलता नहीं बरती जा रही।
स्वतंत्रता दिवस जैसे राष्ट्रीय पर्व पर उच्च पदस्थ संवैधानिक पदाधिकारी का उचित सम्मान न होना, राज्य की छवि को धूमिल करता है।
यदि समय रहते ऐसी चूकें नहीं रोकी गईं, तो यह भविष्य में बड़े संवैधानिक संकट और असहज परिस्थितियों को जन्म दे सकती हैं।
यह प्रकरण केवल एक आयोजन की चूक नहीं, बल्कि प्रशासनिक जिम्मेदारी और प्रोटोकॉल प्रणाली की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न है। शासन को आवश्यक है कि वह त्वरित और कठोर कदम उठाए, ताकि भविष्य में संवैधानिक पदों की गरिमा और परंपराओं की रक्षा सुनिश्चित की जा सके।