बंजर भूमि में फूलेगी खुशहाली, वीर माधो सिंह भंडारी सामूहिक सहकारी खेती योजना का शुभारंभ

पौड़ी/03 अगस्त, 2025
बंजर भूमि में फूलेगी खुशहाली, वीर माधो सिंह भंडारी सामूहिक सहकारी खेती योजना का शुभारंभ
माननीय सहकारिता मंत्री डॉ धन सिंह रावत द्वारा बीज रोपण कर सामूहिक सहकारी खेती योजना का किया गया शुभारंभ
उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों की बंजर भूमि अब आत्मनिर्भरता और सामूहिक प्रगति की मिसाल बनेगी। आज पाबौ क्षेत्र में सहकारिता मंत्री डॉ. धन सिंह रावत ने वीर माधो सिंह भंडारी सामूहिक सहकारी खेती योजना का विधिवत शुभारंभ किया। इस अवसर पर मंत्री ने किसानों के साथ खेतों में उतरकर फूलों के बीज रोपण कर साझा खेती की इस महत्वाकांक्षी योजना को धरातल पर आकार दिया।
विकासखंड पाबौ के चोपड़ा गांव में करीब 170 नाली भूमि पर विकसित की जा रही यह परियोजना, उत्तराखंड के बंजर खेतों को आबाद करने का आदर्श मॉडल बनकर उभर रही है। यहां मिलेट्स (मोटे अनाज) और फूलों की खेती की जाएगी, जिससे न केवल भूमि का पुनर्जीवन होगा, बल्कि स्थानीय किसानों को आय का नया जरिया भी मिलेगा। इस योजना के अंतर्गत किसानों को एक क्लस्टर मॉडल में संगठित कर सामूहिक खेती की जा रही है।
खेतों में बीज रोपण करते हुए सहकारिता मंत्री ने कहा कि वीर माधो सिंह भंडारी सहकारी खेती उत्तराखंड के ग्रामीण अंचलों में बंजर भूमि के सदुपयोग, पारंपरिक खेती के आधुनिकीकरण, लागत में कमी और किसानों की आय में वृद्धि की दिशा में एक निर्णायक पहल है।
यह योजना उत्तराखंड के सहकारिता विभाग द्वारा चलाई जा रही बंजर खेतों को आबाद करने की विशेष मुहिम का हिस्सा है। इसमें ग्रामीणों से बंजर भूमि को क्लस्टर के रूप में लेकर उस पर आधुनिक कृषि तकनीकों के माध्यम से खेती करायी जाती है। सामूहिकता और नवाचार का यह संगम राज्य के कृषि परिदृश्य को नया आकार देने में सक्षम है।
मंत्री ने स्थानीय किसानों के साथ बातचीत कर उनकी समस्याओं को भी समझा और कहा कि भविष्य में योजनाएं और भी अधिक व्यावहारिक एवं उपयोगी बनायी जा सकें।
इस अवसर पर जिला सहायक निबंधक सहकारिता पान सिंह राणा, सहकारी बैंक महाप्रबंधक संदीप रावत सहित अन्य उपस्थित रहे।
उत्तराखंड जैसे पर्वतीय राज्य के लिए यह योजना कई मायनों में गेम चेंजर साबित हो सकती है। पारंपरिक कृषि जहां बिखरी जोत, जनसंख्या पलायन और कठिन भौगोलिक परिस्थितियों से जूझ रही है, वहीं यह योजना संगठित प्रयास, साझा संसाधन और सामूहिक लाभ का आदर्श मॉडल प्रस्तुत करती है।
वीर माधो सिंह भंडारी, जो उत्तराखंड के ऐतिहासिक न्यायप्रिय एवं जननायक माने जाते हैं, उनके नाम पर शुरू की गई यह योजना न केवल कृषि सुधार का प्रतीक है बल्कि स्थानीय अस्मिता से भी जुड़ाव बनाती है।
योजना के प्रमुख लाभ:
1. बंजर भूमि का पुनर्जीवन:
उपयोग में नहीं आ रही उपेक्षित भूमि को उपजाऊ बनाकर उसका दोबारा उपयोग सुनिश्चित किया जाएगा।
2. किसानों की आय में वृद्धि:
मिलेट्स और फूलों की खेती जैसी नकदी फसलों से किसानों को बेहतर बाजार मूल्य मिलेगा। फूलों की खेती विशेष रूप से धार्मिक, औद्योगिक और पर्यटन उपयोग के लिए फायदेमंद है।
3. साझा संसाधनों का समुचित प्रयोग:
बीज, खाद, सिंचाई संसाधन, उपकरण आदि का समन्वित उपयोग होगा, जिससे लागत घटेगी और कार्य क्षमता बढ़ेगी।
4. क्लस्टर आधारित खेती का मॉडल:
छोटे किसानों को संगठित कर एक बड़े फार्म की तरह कार्य करवाया जाएगा, जिससे साइज़-ऑफ़-स्केल के फायदे मिलेंगे।
5. आधुनिक कृषि तकनीकों का प्रयोग:
पारंपरिक कृषि को वैज्ञानिक और तकनीकी विधियों से जोड़ा जाएगा, जैसे ड्रिप सिंचाई, जैविक खाद, मौसम आधारित खेती आदि।
6. रोज़गार के अवसर:
गांवों में ही कृषि आधारित आजीविका के विकल्प खुलेंगे जिससे पलायन रुकेगा और स्थानीय रोजगार में इजाफा होगा।
7. महिलाओं और युवाओं की भागीदारी:
सामूहिक खेती के तहत महिला स्वयं सहायता समूहों और बेरोजगार युवाओं को भी जोड़ा जा सकता है, जिससे सामाजिक समावेशन को बढ़ावा मिलेगा।
वीर माधो सिंह भंडारी सामूहिक सहकारी खेती योजना केवल एक कृषि कार्यक्रम नहीं है, बल्कि सामुदायिक स्वावलंबन और प्राकृतिक संसाधनों के सतत उपयोग की दिशा में उठाया गया दूरदर्शी कदम है। यह उत्तराखंड के कृषि क्षेत्र में सहकारिता के माध्यम से गेम चेंजर साबित हो सकता है।