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पौड़ी के नागेंद्र ने रिवर्स पलायन कर जगाई स्वरोजगार की उम्मीद मुर्गी पालन से प्रतिवर्ष कर रहे लाखों की कमाई

’सफलता की कहानी’
पौड़ी गढ़वाल

 

बवांसा मल्ला के नागेंद्र ने रिवर्स पलायन कर जगाई स्वरोजगार की उम्मीद

मुर्गी पालन से प्रतिवर्ष कर रहे लाखों की कमाई

चूजे खरीदने और मुर्गीबाड़ा के लिए मिला अनुदान

जनपद पौड़ी गढ़वाल के विकास खण्ड बीरोंखाल के युवाओं ने यह साबित कर दिखाया है कि यदि सरकारी योजनाओं का सही दिशा में उपयोग किया जाए, तो ग्रामीण क्षेत्र में रहकर भी आत्मनिर्भरता और आर्थिक सशक्तिकरण संभव है। क्षेत्र के युवाओं ने सरकार की मुर्गी पालन जैसी योजना का लाभ उठाकर सफलता की मिसाल कायम की है। ऐसे ही कहानी ग्राम पंचायत बवांसा मल्ला निवासी नागेन्द्र सिंह की है।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने विभागों को स्वरोजगार योजनाओं से अधिक से अधिक लोगों को जोड़ने के निर्देश दिये हैं। निर्देशों के अनुपालन में विभिन्न विभाग समन्वित रूप से ग्रामीणों को योजनाओं का लाभ दे रहे हैं। विकासखंड बीरोंखाल में भी उत्साही युवक मुर्गी पालन कर अच्छी खासी कमाई कर रहे हैं।
बीरोंखाल की ग्राम पंचायत बवांसा मल्ला निवासी नागेन्द्र सिंह रिवर्स पलायन का बेहतरीन उदाहरण हैं। कोरोना काल के दौरान नागेंद्र सिंह देहरादून से गांव वापस आ गए। गांव आकर उन्होंने स्वरोजगार की ठानी। उन्होंने शुरूआती दौर में 1500 चूजे खरीद कर मुर्गी पालन शुरू किया। इससे उनकी ठीक ठाक आमदनी हुई।
खंड विकास अधिकारी जयपाल सिंह पयाल ने बताया कि नागेंद्र की मेहनत को देखते हुए मनरेगा के अंतर्गत 40 हजार रूपये से मुर्गीबाड़ा का निर्माण कराया गया। जबकि बॉयलर फार्म योजना में उन्हे अनुदान के रूप में 60 हजार रूपये दिए गए।
नागेंद्र बताते हैं कि एक चक्र में लगभग दो हजार चूजों का पालन किया जाता है। इनसे तीन माह में लगभग 160 क्विंटल मांस उत्पादन होता है। एक किलोग्राम मांस 120 से 135 रूपये प्रति किलोग्राम बिक जाता है। जिससे तीन माह में तीन से साढ़े तीन लाख रूपये तक का लाभ हो जाता है। उन्होंने बताया कि मुर्गे रखने के लिए उन्होंने अपने खर्चे पर पोल्ट्री फार्म निर्माण कराया है। सरकारी योजनाओं का लाभ मिलने से उनके उद्यम को गति मिली है।
मुख्य पशु चिकित्साधिकारी डॉ. विशाल शर्मा ने बताया कि न्यूनतम 500 बॉयलर चूजों के साथ बॉयलर फॉर्म की स्थापना के लिए अनुदान दिया जा रहा है। नागेंद्र को विभाग की ओर से 15 रूपये प्रति चूजे के हिसाब से छह बैच के लिए 45 हजार रूपये अनुदान दिया गया। जबकि बाड़ा निर्माण के लिए 15 हजार रूपये भी दिए गए।

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