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हरदा का जवाब नही कब तारीफ और कब कर दे आलोचना बोले ! इन्वेस्टमेंट बरास्ते इवेंट मैनेजमेंट

देहरादून

 

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत सोशल मीडिया में अक्सर काफी सक्रिय रहते हैं वह अपने साथियों को और सरकार को सोशल मीडिया के माध्यम से सुझाव आलोचना और कटाक्ष करते रहते हैं   फिलहाल उत्तराखंड के इन्वेस्टर समिट को हरीश रावत ने इवेंट मैनेजमेंट बता दिया है सोशल मीडिया में अपनी पोस्ट में हरीश रावत लिखते हैं……

—-इन्वेस्टमेंट बरास्ते इवेंट मैनेजमेंट—-

इवेंट मैनेजमेंट भी एक कला है जो राजनीति को बड़ी गहराई से प्रभावित कर रही है। सातवें, आठवें, नवें, दशवें दशक के आस-पास तक इवेंट मैनेजमेंट केवल विदेशी मामलों से संबंधित कार्यक्रमों को लेकर बतौर होता था, इससे इतर सबसे बड़ा इवेंट मैनेजमेंट वाइब्रेंट गुजरात की शो केसिंग को लेकर हुआ था। जिसके पक्ष और विपक्ष में बहुत सारी बातें कही गई, अब छोटी-बड़ी, देशी-स्वदेशी प्रत्येक कार्यक्रम को इवेंट मैनेजमेंट के एक्सपर्ट्स के माध्यम से करवाया जा रहा है, हजारों-हजार फर्में इस काम में लगी हुई हैं। अब तो स्थिति यहां तक पहुंच गई है कि राजनीतिक दलों के आंतरिक कार्यक्रम भी ऐसे विशेषज्ञों के माध्यम से करवाए जा रहे हैं, इसीलिये आज विषय वस्तु में मानवीय तत्व के बजाए परोसने की कला ज्यादा महत्वपूर्ण हो गई है। आज ऐसी ही एक इवेंट्स मैनेजमेंट कला की उत्कृष्ट बानगी देहरादून के FRI में ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट के रूप में प्रारंभ हुई है। माननीय प्रधानमंत्री जी जो इस कला के भारतीय जनक हैं, इस इवेंट का उद्धघाटन कर दिल्ली वापस जा चुके हैं। कल माननीय गृहमंत्री जी इसकी राजनैतिक वार्निशिंग करेंगे। माननीय प्रधानमंत्री जी ने तीन बातें महत्वपूर्ण कह, लोकल-वोकल से ग्लोबल की ओर चलो इसमें कोई दोराय है ही नहीं कि उत्तराखंड को इसे मंत्र मानकर दोनों हाथों से आगे बढ़ाने में जुट जाना चाहिए। दूसरी बात माननीय प्रधानमंत्री जी ने देश के अपने अरबपति मित्रों से कहा कि भैया अपने परिवार की कम से कम एक शादी उत्तराखंड में आकर करो, हमारे पास पहले से ही कॉर्बेट रामनगर, त्रिजुगीनारायण, औली आदि ऐसे डेस्टिनेशन के रूप में लोगों की पसंद बन गये हैं। लेकिन मामला अभी करोड़पतियों तक सीमित है। देखेंगे कि पहला अरबपति कब यहां पधारता है? तीसरी बात, प्रधानमंत्री जी ने राज्य के उन बेरोजगारों को ध्यान में रख कर के कही जिन्हें कई महिनों से मुख्यमंत्री जी यह समझाने का प्रयास कर रहे हैं कि इस समिट में इतना इन्वेस्टमेंट आयेगा कि रोजगारों की झमाझम बारिश होगी, जितना चाहोगे समेट लेना। प्रधानमंत्री जी ने पिछले तीन राज्यों के चुनावों में एक नया नारा उछाला है, “मोदी गारंटी” का और उत्तराखंड के नौजवानों से भी कह दिया है कि रोजगार की हांडी अब बीरबल की खिचड़ी के तरीके से कहीं दूर नहीं बन रही है बल्कि आपके घर आंगन में बन रही है, बस परोसे जाने का इंतजार कीजिये। देखना है कि उत्तराखंड भाजपा मोदी जी की गारंटी की बेरोजगारों के बीच में कैसे मार्केटिंग करती है। मोदी जी के बाद इवेंट मैनेजमेंट की इस कला में थोड़ी बहुत महारत अरविंद केजरीवाल जी के पास है। दूसरे लोग अभी नकल कर रहे हैं लेकिन एक्सपर्टाइज के बिंदु तक नहीं पहुंचे हैं। मगर मैं अपने राज्य के मुख्यमंत्री को बहुत बधाई देना चाहूँगा। अपने दोनों शीर्ष गुरुओं से उन्होंने यह आशिर्वाद बहुत कलात्मक तरीके से ग्रहण किया है। इधर मैंने देखा कि श्री पुष्कर सिंह धामी हर मुद्दे को ऐसे मोड़ पर लेकर आ रहे हैं जिससे वो सुनियोजित तरीके से जिस तरीके से वो मैसेज देना चाहते हैं, उसी तरीके से उससे वो मैसेज निकल रहा है। सिलक्यारा में भी हमने उनकी इस कला को देखा, फिर आपदा प्रबंधन को लेकर के विश्व भर के विशेषज्ञों को जोड़ा वो कितने बड़े विशेषज्ञ थे, क्या उसकी संस्तुतियां थी यह तो बाद में पता चलेगा! लेकिन इंप्रेशन यह गया कि जोशीमठ आदि-आदि को लेकर जो व्यथित उत्तराखण्ड है उसको लेकर के अंतर्राष्ट्रीय समाधान ढूंढा जा रहा है। अब इस समय उत्तराखंड का G 20 ग्लोबल इनवेस्टर्स समिट हो रहा है, समिट से पहले ही ये आभास घर-घर पहुंचा दिया गया है कि रोजगार के लिए भूखे उत्तराखण्ड की सारी भूख इनवेस्टर्स समिट के साथ समाप्त हो जाएगी। संदेश यह भी है कि 8 और 9 दिसंबर के बाद आर्थिक विकास की एक ऊंची छलांग के साथ राज्य आर्थिक विकास के ऊंचे पायदान पर दिखाई देगा, कर्ज में डूबा हुआ राज्य कर्ज से बाहर आ जायेगा और हमारे संसाधन इतने विकसित हो जायेंगे कि हम एक स्वावलंबी राज्य के रूप में आगे बढ़ते दिखेंगे, बड़ा सुखद भोर का सपना सा है। संदेश यह दिया जा रहा है कि इनवेस्टर्स समिट के बैरोमीटर लगाते ही राज्य के सारे सामाजिक, आर्थिक पैरामीटर्स आपके अनुकूल हो जायेंगे। कल तक दिल्ली के दरवाजे पर सर खुजलाने वाला उत्तराखण्ड अब दिल्ली की सहायक की भूमिका में दिखाई देगा। कितना अच्छा है राज्य बनने से पहले भी राज्य बनने के बाद भी नारायण दत्त जी से लेकर के, त्रिवेन्द्र जी, तीरथ जी तक सब दिल्ली के दरवाजे पर सर खुजलाते रहे, ये हमारे पहले मुख्यमंत्री होंगे जिन्हें टोपी निकाल कर सर खुजलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी तो एक बड़ा सुखद सपना जो पहाड़ों की इस ठंड में हम सबको एक विचित्र सी गर्मी का एहसास करवा रहा है, रूपा फ्रंट लाइन की तरीके से, मैं तो उत्तराखण्ड का मुख्यमंत्री बनने से पहले आधी दुनिया से ज्यादा देख चुका था और हिंदुस्तान का भी कोना-कोना देख लिया था, लेकिन श्री धामी एक मंथन गति से चलने वाले धीर गंभीर नौजवान के तरीके से आगे बढ़ रहे थे। लेकिन उन्होंने जो धोबी पाठ मुख्यमंत्री बनने के बाद अपने दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने के लिए चला खैर उसका तो मैं कायल हूं ही क्योंकि मैं इसलिए भी कायल शब्द का उपयोग कर रहा हूं क्योंकि वो लखनऊ विश्वविद्यालय में भी मेरे बाद आए थे, ऐसा सुना था मैंने, मुझे पूरी जानकारी नहीं है‌। मुझे अच्छा लगा था यह सब देखकर, लेकिन अब जिस तरीके से इनवेस्टर्स समिट आयोजित किया जा रहा है तो मुझे तो उनमें भाजपाई अभिमन्यु के दर्शन हो रहे हैं जो गर्भ से भी कुछ सीख के आये थे आखिर मोदी जी की जिसमें द्रोणाचार्य के तरीके से एकाधिकार हो उस एकाधिकार के क्षेत्र में इतनी गुणवक्ता और कलात्मकता से इनवेस्टर्स समिट का आयोजन कर रहे हैं और मैं प्रशंसा न करूं तो मैं कंजूस कहलाऊंगा। यूं कांग्रेस के लोग मुझसे बहुत नाराज होंगे। क्योंकि मैं जो कुछ कह रहा हूं बे मौसम की बांसुरी है। लोकसभा चुनाव से पहले मैं भाजपा के कोर कमांडर की तारीफ कर दे रहा हूं। चाहता तो मैं भी नहीं हूँ, थोड़ी ईर्ष्या हो रहीं है। मैं तो एक ऐसा घौचू मुख्यमंत्री रहा जो बस स्टेशन, रेलवे स्टेशन, बसों और एयरपोर्ट को तो छोड़िए सड़क के किनारों के बोर्डो पर भी अपनी फोटो नहीं लगा पाया और मुझे बहुत अच्छा लगेगा यदि आने वाले कल में चंद्रयान, मंगलयान, सूर्य यान आदि के विज्ञापनों पर भी माननीय मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री जी की फोटो दिखाई देगी। प्रचार का युग है, मन-मस्तिष्क में इतना छा जाइए कि दूसरा दिखाई न दे। मैं सोचता था कि जितना खर्च मैं विज्ञापनों में करूंगा उतना रुपये में मैं किसी गरीब की ल़डकियों की शादी या किसी दूसरे-तीसरे के कामों में मदद में दूँगा तो मैं बेहतर तरीके से अपने कर्तव्य का पालन करूंगा। अब लगता वह बिल्कुल ही खड़ूस आइडिया था। All sad and done लोकतंत्र में लोक संतुष्टि का भाव लोगों के मन में आना महत्वपूर्ण है, माननीय मुख्यमंत्री जी वही संतुष्टि सा भाव पैदा कर रहे है। महाभारत में जब पांडव वन में थे अपने क्रोध के लिए विख्यात महर्षि दुर्वासा को दुर्योधन ने उकसाया और कहा महाराज आप अपने कुछ शिष्यों के साथ जाइए। पांडव लोगों का बड़ा आतिथ्य कर रहे हैं, आप उनके आतिथ्य का लाभ उठाइए और यूं ही उन्हें कृतार्थ करिए। दुर्वासा जी अपने शिष्यों के साथ पांडवों के पास चल दिये, वह तो धन्य हो सूर्य भगवान के दिये हुए अक्षय पात्र की लेकिन उस समय तक द्रौपदी जी खा चुकी थी और अक्षय पात्र में भी कुछ था नहीं, कृष्ण जी को पुकारा तो कृष्ण जी ने अक्षय पात्र में एक छोटा सा अन्न का दाना ढूंढ लिया और उसे खाकर डकारें भरने लगे, दुर्वासा जी जो भोजन से पहले नहाने गए थे उन्हें भी डकारें आने लगी क्योंकि कृष्ण संतुष्ट तो दुनिया संतुष्ट। यदि इस ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट से मोदी जी संतुष्ट हैं तो हम सब उत्तराखंडियों को भी डकारें आनी चाहिये और अपना संतुष्टि भाव जाहिर करना चाहिए। लेकिन आज तो लगता है कि एक नहीं सारे अक्षय पात्र मुख्यमंत्री के हाथ में है, सबसे बड़े दुर्वासा आज के युग के हमारे मीडिया के दोस्त हैं, वो संतुष्ट हैं, दिल्ली और आरएसएस के दुर्वासागण संतुष्ट हैं, मंत्रिमंडल के अंदर जो दुर्वासा गण दिखाई देते थे, वह सब भी संतुष्ट हैं। एकाध, दो-चार मुझ जैसों को छोड़कर विपक्ष भी संतुष्ट सा है। यह जो इन्वेस्टर समिट का अक्षय पात्र है इससे अभी तक तो दुर्वासा गण तो संतुष्ट हैं, मगर इस अक्षय पात्र से आगे क्या निकलेगा यह एक बड़ा सवाल है ? क्या हमारे राज्य की अर्थव्यवस्था को इससे गुणात्मक लाभ होगा ? इस समिट के बाद जो यक्ष प्रश्न उभर कर आयेगा, वह यक्ष प्रश्न है कि क्या इस समिट के जरिए हम राज्य की सबसे प्रमुख चुनौती पलायन का समाधानकारी रास्ता निकाल पाएंगे? प्रति व्यक्ति औसत आय के मामले में क्या हम अग्रिम पंक्ति के राज्यों में खड़े होएंगे ? क्या हमारी बढ़ती हुई बेरोजगारी की समस्या का वास्तव में समाधान निकल पाएगा ? गरीबी और प्रति व्यक्ति आय के मामले में जो भारी अंतर है क्षेत्रवार भी, व्यक्ति वार भी क्या हम उस अंतर को बहुत सीमा तक घटाने में सफल हो पायेंगे ? निराश युवा जो नशे और अपराध की ओर जा रहा है, क्या हम उसके जीवन को सकारात्मक दिशा दे पाएंगे ? क्या राज्य के ऊपर कर्ज का बोझ जो हमारे समय में 40 हजार करोड़ रुपए था जिसको लेकर तत्कालीन नेता विपक्ष द्रौपदी रूदन करते रहते थे और आज वो बढ़कर 1 लाख करोड़ से ऊपर का कर्ज राज्य के ऊपर है, क्या उसे घटाने में हम सफल होंगे ? क्या हम आय के इतने नए स्रोत विकसित कर पाएंगे कि हमें छोटी-छोटी बातों पर भी केंद्र के सामने सर नहीं खुजलाना पड़ेगा ? हमारी राजस्व वृद्धि दर देश में फिर से दूसरे और तीसरे नंबर पर आ सकेगी जो सन् 2017 में थी ? क्या पोषण, शिक्षा और स्वास्थ्य के मानकों में हम केरल जैसे राज्यों के मुकाबले में आगे बढ़ पाएंगे, के साथ खड़े होंगे ? अब इस अक्षय पात्र से श्री धामी जी ने अपेक्षाएं बहुत रखी हैं या उत्तराखंड से रखवा ली हैं! अब तो कभी-कभी ऐसा लगता है खुल जा सिम सिम की तर्ज पर उत्तराखंड के विकास का रास्ता धामी जी आगे चलते जाएंगे और अक्षय पात्र रास्ता बनाता जाएगा। गड्ढे सड़कों में इतने पड़ गये हैं कि चिंतित मुख्यमंत्री को मुख्यमंत्री कार्यालय में एक ऐप, गड्ढा ऐप प्रतिस्थापित करना पड़ा, तीन बार मुख्य सचिव और अतिरिक्त मुख्य सचिव, गड्ढा भरने की डेट बढ़ा चुके हैं, लेकिन फिर भी सड़के हैं कि गड्ढा-गड्ढा हो जा रही हैं! अब लगता है कि हमारी सड़कें आगे गड्ढा विहीन रहेगी क्योंकि तकनीक ऐसी निकल आई है सड़कों आदि के लिए कि वर्षा काल में भी आप गड्ढे ही भरने का काम कर सकते हैं। राज्य बनने से पहले शिक्षा के स्तर में हम केरल के समकक्ष थे और आज हम बहुत पीछे खड़े हैं। शिक्षा मंत्री जी उछल कूद खूब मचा रहे हैं, मगर शिक्षा की स्थिति खराब होती जा रही है। क्या इस इन्वेस्टर समिट के बाद हम अपनी शिक्षा प्रणाली को जिसमें तकनीकी आदि शिक्षा भी सम्मिलित है केरल आदि राज्यों के समकक्ष लाने में सफल होंगे, जिस तरीके से केरल, तमिल, कर्नाटका, कुछ और राज्य के तकनीकी शिक्षण संस्थानों के नौजवानों की राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मांग है, क्या हम उस मांग में खड़े होने लायक अपने नौजवान तैयार कर पाएंगे? ताकि हमारे नौजवान को हमारे बीटेक, पॉलिटेक्निक डिप्लोमा होल्डर या आईटीआई डिप्लोमा धारी को हरिद्वार और आदि लगी फैक्ट्रियों में 11-11, 15-15 हजार की नौकरी के लिए भी दर-दर ठोकरें न खानी पड़ें! क्या हम आज की तकनीक का उपयोग करते हुए अपने नौजवानों को इतने सक्षम बना सकेंगे कि दुनिया उनकी मुट्ठी में हो? जब ज्ञान आपके पास होगा तो घर बैठकर के भी उस ज्ञान का लाभ उठा सकते हैं। शिक्षा के बाद उसी प्रकार से हमारी स्वास्थ्य सेवाओं में भी सुधार के बजाए निरंतर गिरावट आ रही है। क्या हम हर एक जिले के अंदर एक ऐसा प्राइवेट या सरकारी हॉस्पिटल या मेडिकल कॉलेज स्थापित कर सकेंगे, जहां कम से कम तीन चौथाई बीमारियों के विशेषज्ञ डाक्टर उपलब्ध हों !! क्योंकि स्वास्थ्य के कारणों से भी ऊपर का व्यक्ति यदि उसके पास कुछ साधन हैं तो वह मैदान या शहरों में पलायनित होना चाह रहा है जहां उसको इमरजेंसी की स्थिति में तत्काल मेडिकल सुविधा उपलब्ध हो सके। अभी कुछ विश्व बैंक पोषित घर-घर नल की योजना को लेकर कई लोग मेरे पास आते हैं, कहते हैं साहब पहले नलके का पानी था, अब घर में नल लगा दिया है लेकिन 5000-7000 रूपये का बिल आ रहा है, कहां से उसको दें! क्या हम 25 लीटर ही सही, जब राष्ट्रीय जल नीति 2012 का संकल्प है उसके अनुसार उत्तराखंड के प्रत्येक नागरिक को प्रतिदिन इतना अच्छा, स्वस्थ पानी बिना चार्जेज के दे सकेंगे? आज के दिन भी लगभग एक चौथाई गांव ऐसे हैं जो सड़क से नहीं जुड़ पाए हैं। प्रधानमंत्री जी श्री ओम पर्वत पार्वती कुंड में योग साधना तो कर आए हैं, लेकिन अभी भी उस इलाके के लोगों को बातचीत करने के लिए नेपाल के सिम कार्ड का प्रयोग करना पड़ रहा है और भारी टैक्स अदा करना पड़ता है। राज्य की लगभग 47 प्रतिशत आबादी ऐसी है जो इंटरनेट सेवाओं के दायरे से अभी भी बाहर है। अच्छी सड़क नहीं, इंटरनेट नहीं और शिक्षा में गुणवत्ता नहीं तो बताइए वैयक्तिक विकास को गति कहां से मिल पाएगी, कैसे मिल पायेगी? ऐसा नहीं है कि इस सबके लिए सारा बोझ श्री पुष्कर सिंह धामी जी के कंधे पर है, हम सबके कंधे पर भी है। लेकिन यह एक इवेंट मैनेजमेंट का गुण है, उस गुण ने उनसे अपेक्षाएं बहुत बड़ा दी हैं। क्योंकि हम तो सपना देखते-देखते निकल गये, 12-14 स्थान पर हमने हेली कनेक्टिविटी के लिए चयनित किये, दो-तीन स्थान फिक्स विंग के लिए कनेक्टिविटी प्रारंभ की, एक सिंगल लाइन कनेक्टिविटी के तहत जिंदल एयरलाइन को काम सौंपा और कहा कि आप केदारनाथ-बद्रीनाथ जी से कमाइये और राज्य भर में सब्सिडाइज रेट पर एयर सर्विसेज का संचालन करिए। क्योंकि हम जरा पुराने ख्यालों के रहे लेकिन आज उड़ान में उड़ान भर रहे हैं, तो इस उड़ान के युग में भी चार-2 हवाई पट्टियां अभी भी सूनी पड़ी हुई हैं और हेलीपैड तो उखड़ गए हैं, बल्कि धूप वाली जगह पर तो आवारा जानवरों के गोबर करने के स्थान बन गए हैं। टनलबाज हो गये, हमने सोचा था कि ग्लोबल मैकेंजी का एरिया और गुजरात कंसोर्टियम की कृपाकांक्षा के चक्कर में यह टनलिंग हो रही है, मगर सिलक्यारा के बाद बहुत सारे प्रश्न चिन्ह उठकर के खड़े हुये हैं और यह भी सवाल खड़ा हो गया है कि विकास के नाम पर कितना संतुलन पर्यावरण, धन स्थानीय मानव संसाधन का विकास सम्मिलित है, कहीं ऐसा तो नहीं है काटो, लुढ़काओ, माल बनाओ के विशेषज्ञों के हाथ में राज्य फंस गया हो, वह तड़फड़ा रहा हो! यूं सतपाल महाराज जी जब कभी निराश हो जाएंगे तब शायद इस तथ्य को उजागर करेंगे कि ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे लाइन राष्ट्रीय परियोजना के रूप में कांग्रेस की सरकार के समय में ही स्वीकृत हुई थी। मगर वहां हुये अंधाधुंध टनल बाजी के बाद कम से कम 10 साल तो 1/10 गढ़वाल शायद ही आराम से सो पाएगा, जिन गांवों के नीचे से वह टनल गुजरी है! उन गांवों में दरारें पड़ रही हैं और पानी सूख रहा है उन्हें आराम से कैसे नींद आयेगी? डॉपलर रडार जो हमारे समय में स्वीकृत हो गए थे वह भी अभी तक पूरी तरीके से नहीं लग पाए हैं। अच्छा होता कि इन्वेस्टर समिट के साथ डेवलपमेंटल स्ट्रेटजी पर भी राज्य व्यापी चिंतन होता। ग्लोबल इनवेस्टर्स समिट मे आईटी क्षेत्रों, छोटी बड़ी नदी धाराओं पर या धाराओं से सटे हुए क्षेत्र में भंडारण क्षमताओं का सृजन, दूर सिस्टम और विनिर्माण जैसे कई क्षेत्र ऐसे हैं जिनका सरकार अपने विज्ञापनों में उल्लेख कर रही है। इन क्षेत्रों में क्षमता, वृद्धि हो यह राज्य के हित में है। कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जैसे परिवहन सुधार विशेष तौर पर मेट्रो सर्विसेज प्रारंभ करना, रुड़की, मंगलौर, ऋषिकेश से लेकर देहरादून तक और उसी प्रकार से काशीपुर, खटीमा एवं लालकुआं-हल्द्वानी क्षेत्र तक मेट्रो सर्विसेज का विस्तार। रिवर फ्रंट डेवलपमेंट में यदि निवेश आता है तो हम स्वागत करेंगे, क्योंकि हमारी नदी धाराओं के किनारे आप काफी जमीनें निकाल सकते हैं जो आज श्रम में परिवर्तित हैं, जिनके माध्यम से आप अपने लोगों को बसाने का काम भी कर सकते हैं और जो नगरीय इकाइयां हैं जिनमें ये रिवर फ्रंट डेवलपमेंट होंगे इनमें सौंदर्यकरण के साथ-साथ उन्हें आर्थिक रूप से सक्षम करेंगे। हमारी एयर कनेक्टिविटी, हमारे कृषि विश्वविद्यालय और होटिकल्चर के विश्वविद्यालयों में टेक्नोलॉजिकल अपग्रेडेशन जिसमें भरसार, रानी चौड़ी व पंतनगर सम्मिलित हैं। आज इन विश्वविद्यालयों की स्थिति पूरे तरीके से स्टैग्नेटेड हो गई हैं, जबकि ये अनुसंधान संस्थान हैं इनमें भारी पूंजी निवेश की आवश्यकता है ताकि इनकी क्षमता विकसित हो सके और ये हमारी कृषकों की क्षमताओं को विकसित करने का काम कर सकें, इसी तरीके से हमारी पॉलीटेक्निक आईटीआई का सिस्टेमैटिक अपग्रेडेशन जिनमें बड़ी मात्रा में आधुनिक तकनीक का समावेश किया जाना बहुत आवश्यक है, तो ऐसे बहुत सारे क्षेत्र हैं यदि इनमें इन्वेस्टमेंट आ रहा है, यदि केवल हमारी जमीनों को लेने के लिए इन्वेस्टमेंट आ रहा है तो भई थोड़ा मैं विरोध करना चाहूंगा। मेरी सोच है कि हमारे राज्य में वह सारे उद्यम विद्यमान हैं जो हमारे राज्य की पहचान बना सकते हैं, यदि हम उन्हीं को ठीक से सहेज लें बड़ी उपलब्धि होगी, हमें छोटे-छोटे उद्यमों और ऐसे उद्योगों की आवश्यकता है जो रोजगार परख हों। महत्व पूंजी निवेश की मात्रा का नहीं है, महत्व है रोजगार, जन कल्याण, राज्य के आर्थिक संतुलित विकास का। स्थानीय उद्ययमिता को हम परवान नहीं चढ़ा पाये, समन्वय नहीं कर पाए अपने सिडकुल आदि के कॉन्सेप्ट के माध्यमों से और जो जमीनें हमने बचा करके रखी हैं उनमें पहला हक जो उत्तराखंडी उद्यमी का है उनका होना चाहिए। यदि अपने पास भू संसाधन होंगे तो हम कल आने वाले अपने लोगों को खड़ा कर पाएंगे। लेकिन अब जितना बचा खुचा माल है वह इन्वेस्टर्स के हवाले होगा, लेकिन इतना मेरा आग्रह है कि हमारे धार डांडे-कांडे, हमारी पहचानों के चिन्ह उनको बचाकर के रख दीजिए क्योंकि मैं वनंतरा रिजॉर्ट कल्चर, कसीनो व बारवाला कल्चर जो कुछ यहां मर्ज होते देख रहा हूं उससे मैं चाहता हूं कि हमारा राज्य थोड़ा दूर रहे। जहां तक हम कर सकते हैं हमें बचाव करना चाहिए। मगर फिर भी आप इन्वेस्टमेंट दे रहे हैं BHEL के पास अथाह जमीन है और अथाह संभावनाएं हैं। मैं, प्रधानमंत्री जी का इन्वेस्टर समिट में माला हाथ में लेकर के स्वागत करने पहुंचता यदि BHEL की कैपेसिटी वृद्धि का वह ऐलान करते! जमीन तो हमारी चली गई लेकिन 2014 में जितने कुल कर्मचारी भेल में कार्यरत थे आज उसके 1/4 भू-भाग आईडीपीएल ऋषिकेश, एचएमटी रानीबाग भीमताल, सब इंतजार कर रहे हैं कि कोई इंवेस्टमेंट आ रहा तो इनकी फैली हुई बाहों में क्यों नहीं आ रहा है? बहुत कुछ कहने को है मगर मैं इतना अवश्य कहना चाहूंगा कि चलिए पहले न सही, आप ही सयाने हैं, हम पीछे खड़े हो जाएंगे। लेकिन एक बार जबरदस्त मंथन तो होना चाहिए कि हमारे विकास की स्ट्रेटजी क्या रहेगी? राज्य के आय के संसाधन बढ़ाने के लिए क्या-क्या रास्ते हैं? अभी कुछ दिन पूर्व मेरी बड़े पुलिस ऑफिसर से बात हुई तो उन्होंने जिक्र किया कि आपने एंट्री टैक्स को आगे बढ़ाया था और रोड टैक्स की भी बात की थी, आखिर आपको अपने राज्य के आय के साधन ढूंढने पड़ेंगे। हमने जल कर, क्योंकि हमारा प्राकृतिक संसाधन जल है और हम एक जल शक्ति राज्य बनें इसके लिए वाटर बोनस से लेकर के बहुत सारी बुनियादी चीजें प्रारंभ की जिससे हमारे पास एक प्राकृतिक संसाधन हमारी धरती के अंदर जो अकूत मात्रा में इकट्ठा हो सकता है और हम प्यासे मानवता को उसको दें तो उसके लिए हम कर के रूप में जो हमारी आई का स्रोत है उसकी वृद्धि हो सके, हमने प्रारंभ किया था हम तो टिहरी से ही मात खा गये, तो ऐसे बहुत सारे रास्ते तलाशे थे, अब इस समय हम केवल बालू और शराब की आय पर निर्भर राज्य हो गए हैं और यह दोनों हमारे राज्य में अपराध को बढ़ा रहे हैं। इनका कितना उपयोग होना चाहिए, आय को बढ़ाइये आय के लिए इन संसाधनों का उपयोग करिए और कभी-कभी जीवन की रक्षा के लिए भी जरूरी है और भी बहुत सारी बातें हैं, ऐसा नहीं है कि मैं एक ही फैक्टर को देखकर के बात कर रहा हूं लेकिन हर चीज की एक सीमा है, अब बालू के प्रबंधन के लिए आप बाहरी कंपनियां लाने लग जाएंगे और उनके साथ बाउंसर आएंगे, अपराध बढ़ेंगे, बालू हमारा होगा, अपराध हमारी ही धरती में होंगे माल कहीं और जाएगा, यही शराब के मामले में हो रहा है। अब तो शराब से होते-होते बात ड्रग्स तक चली गई है। भगवान न करे वह दिन आए जब लोग कहें कि उड़ता पंजाब की जगह उड़ता उत्तराखंड तो यह कुछ ऐसे बिंदु हैं जिन पर इन्वेस्टर समिट के बाद ये सवाल निश्चय ही श्री धामी के सम्मुख होने चाहिये।
जय उत्तराखंडियत।

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