गांव में ही गच्चा खा गए कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल — त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में करारी हार, सियासी पकड़ पर उठे सवाल

पौड़ी गढ़वाल
गांव में ही गच्चा खा गए कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल — त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में करारी हार, सियासी पकड़ पर उठे सवाल
उत्तराखंड की राजनीति में कभी कांग्रेस के रणनीतिक चेहरे और जमीनी नेता माने जाने वाले गणेश गोदियाल, जो वर्तमान में कांग्रेस कार्यसमिति (CWC) के सदस्य भी हैं, उन्हें अपनी ही ग्रामसभा पाटुली में हुए हालिया त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में बड़ा राजनीतिक झटका लगा है।
जहां उम्मीद थी कि स्थानीय स्तर पर उनका प्रभाव पार्टी समर्थित प्रत्याशियों को बढ़त दिलाएगा, वहीं ग्राम प्रधान, क्षेत्र पंचायत सदस्य और जिला पंचायत सदस्य — तीनों स्तरों पर कांग्रेस समर्थित उम्मीदवारों की हार ने कांग्रेस संगठन की जमीनी पकड़ पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
हार की पूरी तस्वीर:
प्रधान पद: इस पद पर एक निर्विरोध महिला प्रत्याशी निर्वाचित हुईं, जो किसी दल की घोषित उम्मीदवार नहीं थीं। कांग्रेस यहां कोई रणनीतिक हस्तक्षेप नहीं कर सकी।
क्षेत्र पंचायत सदस्य: भाजपा के पूर्व मंडल अध्यक्ष वीरेंद्र रावत की धर्मपत्नी ने यह सीट बिना कड़ी टक्कर के जीत ली। यह भाजपा के सांगठनिक और पारिवारिक नेटवर्क की सशक्तता को दर्शाता है।
जिला पंचायत सदस्य: कांग्रेस समर्थित उम्मीदवार प्रीति नौडियाल तीसरे स्थान पर रहीं — न केवल भाजपा, बल्कि दो निर्दलीयों से भी पीछे। यह कांग्रेस के लिए सबसे करारा झटका माना जा रहा है।
राजनीतिक विश्लेषण:
यह पराजय महज़ प्रत्याशियों की नहीं, बल्कि कांग्रेस की जमीनी हकीकत का आईना है — विशेषकर तब, जब स्वयं गणेश गोदियाल ने अपने गृह क्षेत्र पाटुली में मोर्चा संभाल रखा था।
इस हार के संकेत हैं:
कांग्रेस का पारंपरिक वोट बैंक बिखर रहा है।
संगठनात्मक ढांचे में गंभीर कमजोरियां हैं।
भाजपा ने स्थानीय कार्यकर्ताओं को खुली छूट देकर चुनावी रणनीति में माइक्रो लेवल पर बढ़त बनाई है।
गणेश गोदियाल जैसे वरिष्ठ और अब CWC सदस्य की हार कांग्रेस कार्यकर्ताओं के मनोबल पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है। साथ ही यह भी रेखांकित करता है कि नेतृत्व अब महज़ भाषणों और पहचान से नहीं, बल्कि धरातली प्रदर्शन से आंका जाएगा।
भविष्य की राजनीति पर प्रभाव:
यह परिणाम उत्तराखंड की राजनीति में दो ठोस संदेश देता है:
1. कांग्रेस को अपने वरिष्ठ नेताओं के प्रभाव क्षेत्रों में संगठनात्मक मजबूती और कार्यकर्ता सशक्तिकरण पर पुनर्विचार करना होगा।
2. भाजपा की रणनीति — जिसमें स्थानीय ऊर्जा को तरजीह देकर दो कार्यकर्ताओं को एक ही सीट पर मैदान में उतारना भी शामिल था — मतदाता संपर्क और कार्यकर्ता संवाद में कांग्रेस से आगे साबित हुई।
गणेश गोदियाल की यह पराजय केवल एक स्थानीय चुनाव नहीं, बल्कि राजनीतिक चेतावनी है — कि अब जनता चेहरों या पदों से नहीं, परिणामों और धरातल पर किए गए काम से नेताओं का मूल्यांकन करती है।
कांग्रेस के लिए यह आत्ममंथन का समय है। जब पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और वर्तमान CWC सदस्य ही अपनी ग्रामसभा में हार जाएं, तो प्रदेश संगठन की हालत की गंभीरता का अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं।